गुप्त सम्राटों ने 275 ईस्वी से 550 ईस्वी तक पूरी ऊर्जा और ऊर्जा के साथ शासन किया। उसके बाद उसका पतन शुरू हुआ और लगभग 570 ई. में भारतीय इतिहास ( Bharat Ka Itihas )में उसका राज्य पूरी तरह से नष्ट हो गया। गुप्तों के पतन के कई कारण थे, उनमें से कुछ प्रमुख कारण इस प्रकार हैं-
(१) अक्षम उत्तराधिकारी: गुप्त साम्राज्य के पतन का पहला कारण यह बन गया कि जब स्कंदगुप्त की मृत्यु हो गई, तो पुरुगुप्त, नरसिंहगुप्त, कुमारगुप्त (द्वितीय), भानुगुप्त आदि जैसे गुप्त-सम्राट अक्षम और शक्तिहीन हो गए। उनमें विशाल गुप्त-राज्य को सुरक्षित रखने की क्षमता नहीं थी। केंद्रीकृत अधिकारियों की सुरक्षा और ताकत सम्राट की क्षमता पर निर्भर करती है। इसलिए, अक्षम शासकों के शासनकाल में किसी न किसी स्तर पर साम्राज्य का पतन स्वाभाविक हो गया।
(2) हूणों का आक्रमण गुप्त साम्राज्य के पतन का दूसरा कारण हूणों का आक्रमण था। हालांकि स्कंदगुप्त ने इन हमलों का सफलतापूर्वक सामना किया, लेकिन हूणों के हमले नहीं रुके। बाद के कमजोर गुप्त-सम्राटों के मार्गदर्शन के दौरान, उन हमलों में भी इसी तरह सुधार हुआ।
(३) निरंतर सीमा नीति का अभाव: बाद के गुप्त-सम्राटों ने अब आपको विदेशी आक्रमणों से बचाने के लिए किसी निश्चित सीमा कवरेज का पालन नहीं किया। न ही उन्होंने सीमाओं पर तैनात सेनाओं की मजबूती पर ध्यान दिया। इसलिए, वे लंबे समय तक हूणों के गैर-रोक हमलों को नहीं रोक सके।
(चार) राज्यपालों की महत्वाकांक्षाएँ: गुप्त साम्राज्य के पतन का 1/3 कारण राज्यपालों के उद्देश्य बन गए। स्कंदगुप्त के बाद, जब अक्षम शासक सिंहासन पर चढ़े, प्रांतों ने खुद को निष्पक्ष घोषित करना शुरू कर दिया। सबसे पहले बल्लभ के मैत्रकों ने स्वयं को स्वतंत्र घोषित किया। इसके बाद सौराष्ट्र, मालवा, बंगाल और कई अन्य के शासक। साथ ही स्वयं को निष्पक्ष घोषित कर दिया, जिससे गुप्त-राज्य विघटित हो गया।
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