अशोक की मृत्यु के साथ ही मौर्य साम्राज्य का अंत शुरू हो गया। इसके लिए स्वयं अशोक से लेकर उनके उत्तराधिकारी भी जिम्मेदार थे। मौर्य साम्राज्य प्राचीन भारत ( Prachin Bharat Ka itihas )का सबसे बड़ा साम्राज्य था। मौर्य साम्राज्य के पतन के मुख्य कारण इस प्रकार रहे हैं-
(1) अशोक की अहिंसा की नीति: अशोक ने अहिंसा की नीति को शासन का आधार बनाया। इस नीति का पालन करते हुए, वह अपने पूरे जीवनकाल में साम्राज्य को व्यवस्थित और अच्छी तरह से तैयार रखना चाह सकता था, लेकिन अहिंसा के कवरेज का त्याग प्रभाव अब अच्छा नहीं था। उन्होंने जो आध्यात्मिकता का वातावरण बनाया, वह नौसेना की दृष्टि से साम्राज्य के लिए घातक सिद्ध हुआ। अशोक के शासनकाल के किसी बिंदु पर यह हो गया कि सैन्य शक्ति को बेकार माना गया। इसने वास्तव में उसे कमजोर कर दिया होगा। यहां तक कि उसके उत्तराधिकारी भी सैन्य शक्ति में वृद्धि नहीं कर सके।
(2) ब्राह्मणों की प्रतिक्रिया: मौर्य साम्राज्य के सभी सम्राट सामान्य रूप से जैन धर्म या बौद्ध धर्म के प्रशंसक रहे हैं और उन दोनों धर्मों को प्रोत्साहित और प्रोत्साहित करते रहे। इससे कुछ ब्राह्मणों की मौर्यों के प्रति प्रतिक्रिया हुई और वे मौर्य साम्राज्य के दुश्मन बन गए। इससे राज्य की ऊर्जा लगातार बिगड़ती चली गई।
(3) अक्षम उत्तराधिकारी: अब अशोक के अधिकांश उत्तराधिकारियों में से एक अविवाहित नहीं था जो उसके विशाल केंद्रीकृत शासन का प्रबंधन कर सके। जैसे ही संबंधित शक्ति कमजोर हुई, राष्ट्र के दूर-दराज के हिस्सों के प्रांतों ने दंगे का झंडा फहराया और खुद को स्वतंत्र घोषित कर दिया। अशोक के कुछ उत्तराधिकारी बहुत अत्याचारी हो गए। इसलिए, विषयों को भी मौर्य शासकों के लिए कोई सहानुभूति नहीं थी। अशोक के कई पुत्र थे जिनमें आपस में युद्ध हुआ था। यह सब मौर्य साम्राज्य के लिए विनाशकारी साबित हुआ।
(4) इंट्रापुर और कोर्ट रूम की साजिशें: अशोक के कई बेटे और रानियां थीं, जो अक्सर एक-दूसरे के खिलाफ साजिश रचते थे। इसका भी अब साम्राज्य पर भयानक प्रभाव नहीं पड़ा। बृहद्रथ के शासनकाल में शाही दरबार में कार्यक्रम हुए। एक टीम कमांडर की और दूसरी हाई मिनिस्टर की हो जाती है। यह पक्षपात साम्राज्य के लिए घातक सिद्ध हुआ। कुल मिलाकर पुष्यमित्र शुंग मौर्य-सम्राट बृहद्रथ का वध कर स्वयं मगध के सिंहासन पर विराजमान हो गए। इस प्रकार मौर्य साम्राज्य का दीया हर समय बुझता रहा।
(5) यवनों का आक्रमण: मौर्य-साम्राज्य की शक्ति को कमजोर होते देख बैक्ट्रिया के यवनों ने भी मगध राष्ट्र के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र पर आक्रमण करना शुरू कर दिया और इसे विघटित करने में बहुत बड़ा योगदान दिया।
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